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इजहार-ए-इश्क़

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इजहार-ए-इश्क़     यूँ अल्फाज खामोश हुए बैठे हैं।  कुछ जम गए कुछ पूरे हुए बैठे हैं।  वो तस्वीर जो धुंधली सी थी कहीं,  उसे खुद के हाथों रंगीन किए बैठे हैं।  साया जो लौट जाता था चौखट से, उसे अपने ही घर अब पनाह दिए बैठे हैं।   खामोशी थी इस वीराने में अब से पहले,  अब हर चीज़ को काबिज किए बैठे हैं। अनिल करानगरु  

परिवर्तित समय और इन्सान

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  धन का अभिमान कर रहा इन्सान , रिश्तों को नहीं, धन-दौलत को मान रहा भगवान्, परिवार की खुशियों को खरीदते देखा मैंने उसे,  वो जल्दी में था इतना के, भूल गया सब सामान।    एक शख्स वो भी था, जिसे धन का न था ज्ञान  रिश्तों को ही मान बैठा था मुर्ख अपनी पहचान  मिट्टी के आशियाँ को महल बताता था वो,  जिसमे रिश्तों और मोहब्बत का पड़ा था सामान।  बच्चों का बचपन देखो अब नया हो गया , गलियां वीरान और घर का कमरा मैदान हो गया,  मैंने कभी उसे दौबारा उस गली गुजरते नहीं देखा , जहाँ हर रोज लगाते थे कभी अपनी खुशियों की दुकान।  धन का अभिमान कर रहा इन्सान,  रिश्तों को नहीं अब धन-दौलत को मान रहा भगवान ।                                       अनिल करानगरु

सफर ख्वाहिशों का

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 ए जिंदगी थोड़ा सब्र तो रख, अभी कई इम्तेहान बाकि है। अभी तो शुरुवात है, अभी तो खाली पन्नों को भरना बाकी है। वो जो रंगीन सा आसमान, वो बादल उसे छु आना अभी बाकी है।  अभी थका जरूर हूँ मगर, अभी हौसले में उड़ान बाकी है। बनी है तस्वीर जो, उसमें भी रंग भरना अभी बाकी है।  तू बस साथ देना ए जिंदगी, तेरी चौखट में अभी कई इम्तेहान बाकि है।                                                        अनिल करानगरु

मुलाकात

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वो फिर पूछने चला है मोहब्बत के किस्से  जो एक दौर में ओझल से हो गए।  मैंने कहा मोहब्बत तो आज भी है मगर  आज उसके मायने अलग हो गए।  कल जो मोहब्बत किसी इंसान से थी  आज उनकी जगह अल्फाज़ हो गए।  जिस्म कलम और रूह शब्दों के साथ हो गए।  वो खामोश रहा कुछ देर आंखों में सागर लिए  और अलविदा कहा तो उसके शब्द अमृत हो गए।  कहा वक़्त के साथ एहसास नहीं जरिया बदला  हम आज भी उसी जरिए के मोहताज हो गए ।।                                                       अनिल करानगरु

सपनों का आशियाँ

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  सपनों को जलता देख, अब कैसे रात गुजार पाउंगा!!  जब छत ही मुक्कमल नहीं तो फिर कैसे, खुद को महफ़ूज़ रख पाउंगा!!  बरसातों ने अक्सर जी भर के भिगोया है मुझे, अब सूरज की तपन का इन्तेजार कब तक कर पाउंगा!!  सुना है कल आशियाँ भी ढह जाएगा, फिर बरसातों की उन रातों को दोबारा कैसे मिल पाउंगा!!  जिंदगी भर राख को खंगाला करूंगा, जले सपनों में क्या खुद को कभी ढूँढ पाउंगा!!                                                       अनिल करानगरु

ज़िंदगी

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कोई था ही नहीं किसके जाने का गम करते!! जिंदगी बस ख्यालों में ही गुजर गयी, अब किसी से मोहब्बत भी क्या करते !! चंद दिनों का मेहमान हूँ ,कह दिया हमने भी ,और भला हम उनसे कहते भी तो क्या कहते !! वो ख़्वाबों में मिली थी एक रोज मुझे, मैं देखता रहा अलविदा भी कैसे कहता उसे !! मालूम था, ख्यालों का सफर यक़ीनन ख़तम होगा फिर किसी से उम्मीद क्या करते  !! मुलाकात होगी दोबारा तुमसे यही कह के किनारा किया, और हम भला करते भी तो क्या करते!! कोई था ही नहीं किसके जाने का गम करते , कोई था ही नहीं किसके जाने का गम करते!!!!!!!

सफर

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सफर क्या पूछूं उन परिदों से, जो आसमां छू आते हैं!! चाहत होती है उडान भरने की, तभी तो सारा जहां घूम आते हैं!!