सपनों का आशियाँ
सपनों को जलता देख, अब कैसे रात गुजार पाउंगा!! जब छत ही मुक्कमल नहीं तो फिर कैसे, खुद को महफ़ूज़ रख पाउंगा!! बरसातों ने अक्सर जी भर के भिगोया है मुझे, अब सूरज की तपन का इन्तेजार कब तक कर पाउंगा!! सुना है कल आशियाँ भी ढह जाएगा, फिर बरसातों की उन रातों को दोबारा कैसे मिल पाउंगा!! जिंदगी भर राख को खंगाला करूंगा, जले सपनों में क्या खुद को कभी ढूँढ पाउंगा!! अनिल करानगरु