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इजहार-ए-इश्क़

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इजहार-ए-इश्क़     यूँ अल्फाज खामोश हुए बैठे हैं।  कुछ जम गए कुछ पूरे हुए बैठे हैं।  वो तस्वीर जो धुंधली सी थी कहीं,  उसे खुद के हाथों रंगीन किए बैठे हैं।  साया जो लौट जाता था चौखट से, उसे अपने ही घर अब पनाह दिए बैठे हैं।   खामोशी थी इस वीराने में अब से पहले,  अब हर चीज़ को काबिज किए बैठे हैं। अनिल करानगरु