इजहार-ए-इश्क़
इजहार-ए-इश्क़ |
यूँ अल्फाज खामोश हुए बैठे हैं।
कुछ जम गए कुछ पूरे हुए बैठे हैं।
उसे खुद के हाथों रंगीन किए बैठे हैं।
साया जो लौट जाता था चौखट से,
उसे अपने ही घर अब पनाह दिए बैठे हैं।
उसे अपने ही घर अब पनाह दिए बैठे हैं।
खामोशी थी इस वीराने में अब से पहले,
अब हर चीज़ को काबिज किए बैठे हैं।
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