इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट
मुलाकात
वो फिर पूछने चला है मोहब्बत के किस्से जो एक दौर में ओझल से हो गए। मैंने कहा मोहब्बत तो आज भी है मगर आज उसके मायने अलग हो गए। कल जो मोहब्बत किसी इंसान से थी आज उनकी जगह अल्फाज़ हो गए। जिस्म कलम और रूह शब्दों के साथ हो गए। वो खामोश रहा कुछ देर आंखों में सागर लिए और अलविदा कहा तो उसके शब्द अमृत हो गए। कहा वक़्त के साथ एहसास नहीं जरिया बदला हम आज भी उसी जरिए के मोहताज हो गए ।। अनिल करानगरु
सपनों का आशियाँ
सपनों को जलता देख, अब कैसे रात गुजार पाउंगा!! जब छत ही मुक्कमल नहीं तो फिर कैसे, खुद को महफ़ूज़ रख पाउंगा!! बरसातों ने अक्सर जी भर के भिगोया है मुझे, अब सूरज की तपन का इन्तेजार कब तक कर पाउंगा!! सुना है कल आशियाँ भी ढह जाएगा, फिर बरसातों की उन रातों को दोबारा कैसे मिल पाउंगा!! जिंदगी भर राख को खंगाला करूंगा, जले सपनों में क्या खुद को कभी ढूँढ पाउंगा!! अनिल करानगरु
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें