ख़ामोशी कह गयी हाल ऐ दिल की दास्ताँ तुम जल्दी में थे शायद सुन न सके
हम अलफ़ाज़ें बयान तो करना चाहता थे मगर अफ़सोस तुम
सांसें गिन न सके
तुम कहते रहे के ख़ुश हूँ मैं मेरी नजर से तुम खुद को देख न सके!!!
इजहार-ए-इश्क़ यूँ अल्फाज खामोश हुए बैठे हैं। कुछ जम गए कुछ पूरे हुए बैठे हैं। वो तस्वीर जो धुंधली सी थी कहीं, उसे खुद के हाथों रंगीन किए बैठे हैं। साया जो लौट जाता था चौखट से, उसे अपने ही घर अब पनाह दिए बैठे हैं। खामोशी थी इस वीराने में अब से पहले, अब हर चीज़ को काबिज किए बैठे हैं। अनिल करानगरु
अभी चलना जरुरी है!!!!!!! Anil Krangru वक्त की मंझधार में चलना अभी जरुरी है, कदम अभी रुके नहीं चलना अभी मज़बूरी है, लाख कर ले कोशिश जमाना भी अब से हम तो सफर में है, उनका जलना भी जरुरी है , मुसाफिर हूँ यारों मंजिल मिलना भी जरुरी है , कौन साथ रहा कौन छोड़ गया राहों में आज ये जानना भी जरुरी है!
सपनों को जलता देख, अब कैसे रात गुजार पाउंगा!! जब छत ही मुक्कमल नहीं तो फिर कैसे, खुद को महफ़ूज़ रख पाउंगा!! बरसातों ने अक्सर जी भर के भिगोया है मुझे, अब सूरज की तपन का इन्तेजार कब तक कर पाउंगा!! सुना है कल आशियाँ भी ढह जाएगा, फिर बरसातों की उन रातों को दोबारा कैसे मिल पाउंगा!! जिंदगी भर राख को खंगाला करूंगा, जले सपनों में क्या खुद को कभी ढूँढ पाउंगा!! अनिल करानगरु
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